South Asia 24×7 का मतलब पक्की खबर, देश और जहान की ताजातरीन खबरें,पत्रकारिता की नई आधारशिला, निष्पक्षता और पारदर्शिता अब, South Asia 24×7 पर खबर ग्राउंड जीरो से, मंझे हुए संवाददाताओं के साथ,हर जन मुद्दे पर, सीधा सवाल सरकार से ,सिर्फ South Asia 24 ×7 पर,पत्रकारिता की मजबूती के लिए जुड़िए हमारे साथ, South Asia 24×7 के यूट्यूब चैनल,फेसबुक और ट्विटर पर क्योंकि हम करते है बात मुद्दे की

South Asia24x7

Hindi News, Breaking News in Hindi, हिंदी न्यूज़ , Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi,South Asia24x7

बढ़ती आर्थिक असमानता: अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती

1 min read

बढ़ती आर्थिक असमानता: अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती

प्रो लल्लन प्रसाद

अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की पहचान है। विभिन्न संप्रदायों, जातियों, भाषा बोलने वालों, खानपान, रहन-सहन, विचारों, संस्कारों, रीति रिवाजों को मानने वालों का एक साथ रहना विश्व पटल पर भारत को एक विशेष स्थान दिलाता है। वैसे ही आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए, बहुत गरीब, गरीब, मध्यम और उच्च वर्ग के लोग, अमीर और बहुत अमीर भी इस देश की पहचान बन चुके हैं। विगत कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का जितना तेजी से विकास हुआ उतनी ही तेजी से आर्थिक असमानता बढ़ी है, करोड़ों लोग गरीबी रेखा के ऊपर आए किंतु उनकी आमदनी और संपत्ति उस पैमाने पर नहीं बढ़ी जितनी अमीरों की। एक अनुमान के अनुसार एक 1% शीर्ष अमीरों के पास देश की 40% संपत्ति है। 1992 के बाद विदेशी निवेश में तेजी से वृद्धि हुई जिससे अर्थव्यवस्था का विकास भी बहुत तेजी से हुआ और भारत विश्व की पांचवी आर्थिक शक्ति बन गया, किंतु सबसे अधिक लाभ अरबपतियों को हुआ, जिनमें से कुछ विश्व के बड़े अरबपतियों की सूची में आ गये।

Rudraprayag accident रुद्रप्रयाग अलकनंदा में गिरी यात्रियों की बस ,14 की मौत 12 घायल

आर्थिक असमानता हाल ही में संपन्न संसदीय चुनाव में चर्चा का एक मुख्य विषय बन गया था। चुनाव के द्वितीय चरण के दौरान भारतीय ओवरसीज कांग्रेस अध्यक्ष सैम पित्रोदा के उस बयान को लेकर देशव्यापी बहस छिड़ गई जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका में जो उत्तराधिकार कानून है उसके तर्ज पर भारत में भी कानून बनाए जाने पर विचार होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे कांग्रेस पार्टी की शहरी नक्सलवादी विचारधारा एवं जनता को लूटने की योजना करार दी है। उन्होंने इसकी व्याख्या को आगे बढ़ाते हुए कहा कि महिलाओं का मंगलसूत्र, उनकी जमा पूंजी, सोने चांदी गहने और लोगों की मेहनत की कमाई छीन कर कांग्रेस उन लोगों में बांटना चाहती है जो घुसपैठिये हैं, जिनके बहुत से बच्चे हैं। इशारा अल्प समुदाय की ओर था जिसके लिए कहा जाता है कि कांग्रेस उन्हें अपने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने एक वक्तव्य दिया था कि भारत की संपत्ति पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। उस समय इस वक्तव्य पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। संसदीय चुनाव में यह मुद्दा फिर से उठ गया। देश के बहुसंख्यक वर्ग के हितों पर यह सीधा प्रहार था जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।

 

थॉमस पीकेटी और उनके सहयोगियों द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘भारत में आमदनी और संपत्ति की असमानता 1922 – 2023: अरबपतियों का बढ़ता राज’ में कहा गया है कि भारत में आर्थिक विषमता चरम सीमा पर है। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 1991 में मात्र एक अरबपति थे, 2011 में 52 और 2022 में 162 हो गए। जातिगत जनगणना पर कांग्रेस और कुछ और पार्टियों का जोर और लोगों की संपत्ति के एक्सरे कराने के चुनाव के दरमियान बयान यह संकेत दे रहे थे यदि उनकी सरकार बनी तो संपत्ति के पुनर्वितरण की योजना बनायी जा सकती थी, किंतु जनता ने सत्ता की चाबी उनके हाथ में नहीं दी। आजादी के बाद लगभग 6 दशकों तक कांग्रेस का शासन रहा तब यह बात नहीं उठाई गई, समाज में असमानता दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

पिछले 10 वर्षों के शासन में देश का आर्थिक विकास जितनी तेजी से हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ। भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। इस बीच आमदनी और संपत्ति का वितरण लोक कल्याणकारी योजनाओं जैसे गरीबों के लिए मुफ्त राशन, किसानों के लिये मानदेय, उज्ज्वला, जनधन, मुद्रा योजना, कौशल भारत मिशन, स्टार्ट अप इंडिया, पेंशन और बीमा योजनाएं, आयुष्मान भारत आदि के माध्यम से हुआ है, लोगों की आमदनी बढ़ी है, जीवन स्तर उठा है। भारत के गरीबी उन्मूलन के प्रयास की सफलता की विश्व बैंक ने भी सराहा है। अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ नीचे तक गया है इससे इनकार नहीं किया जा सकता यद्यपि यह सच है की असमानता है और उसे कम करने के लिए संवैधानिक तरीकों से और प्रयास की आवश्यकता है।

 

आर्थिक असमानता कम करने के लिए संपत्ति कर दुनियां के कई देशों में लगाई जाती है। अमेरिका के 6 राज्यों में संपत्ति कर लागू है, सामान्यतः यह उन लोगों को प्रभावित करती है जिनकी संपत्ति 10 लाख डॉलर से अधिक है। संपत्ति की मार्केट में जो कीमत होती है उसके ऊपर टैक्स लगता है जो 50- 55 प्रतिशत है। फ्रांस में संपत्ति कर दर 5-60 प्रतिशत है। इंग्लैंड में डोमिसाइल के आधार पर संपत्तिकर निर्धारित की जाती है। जापान में 10-70 प्रतिशत तक संपत्ति कर की व्यवस्था है। बेल्जियम में यह 80% तक जा सकता है, साउथ कोरिया में 50% और स्पेन में 7.65 – 34 प्रतिशत तक संपत्ति का लगाई जाती है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चीन मे संपत्ति कर का कोई प्रावधान नहीं है। आजादी मिलने के बाद भारत में इस्टेट ड्यूटी एक्ट लागू किया गया था किंतु वह सफल नहीं हुआ। संपत्ति कर दोबारा लगाई जाए या नहीं यह विवादित विषय है। आर्थिक विषमता दुनियां के सभी देशों में है कहीं कम कहीं अधिक चाहे वह पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत हो या किसी व्यवस्था में।

समाज में असमानता सदियों से चली आ रही सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था के कारण होती है, उसे पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं है। मार्क्सवादी, माओवादी और नक्सलवादी व्यवस्थाओं में भी यह समाप्त नहीं की जा सकी। भारत जैसे विकासशील जनतांत्रिक देश में असमानता कम करने के लिए संवैधानिक तरीकों से ही आगे बढ़ा जा सकता है। देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है और भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। बढ़ती आबादी प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ बढ़ा रही है विकास का लाभ अपेक्षाकृत कम हो रहा है। सामान्य दूर करने के लिएआबादी नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। तेजी से आर्थिक विकास और प्रशासनिक व्यवस्था जिसमें संपत्ति का केंद्रीय करण कम किया जा सके लक्ष्य प्राप्ति के साधक हो सकते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट भारत में अभी भी अधिकांश विकसित और विकासशील देशों से कम है, जो सोचनीय है। मानव विकास ही आर्थिक विकास की पहली सीढ़ी है और अंतिम सीढ़ी भी। विश्व के मानव विकास सूचकांक में 193 देश में भारत का 134 वां स्थान है जो सोचनीय है। कृषि प्रधान देश में किसानों, कारीगरों और और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की आमदनी और संपत्ति में तेजी से विकास की आवश्यकता है। जातीय जनगणना और लोगों में विद्वेष पैदा करने, बड़े-बड़े अमीरों की संपत्ति जबरदस्ती छीन कर बांटने से अराजकता बढ़ेगी, असमानता दूर नहीं होगी। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में नीचे के लोगों की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास में तेजी लाने की आवश्यकता है। कौशल विकास योजना में अधिक से अधिक नौजवानों को प्रशिक्षण एवं निजी उद्योग और व्यापार स्थापना के लिए प्रोत्साहन नए रोजगार उत्पन्न करने एवं आर्थिक विषमता दूर करने में कारगर हो सकते हैं।

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!